बिलारा श्री आई माताजी मंदिर (Bilara Shree Aaimataji Temple)
- पिछले 500 वर्षो से सब धर्मो के व्यक्तियों के लिए मन्दिर हमेशा खुला रहता है।
- मन्दिर सुबह 5 बजे से रात्रि 9 बजे तक दर्शनार्थ खुला रहता है।
- मन्दिर में एक भव्य म्युजियम बना हुआ है। जिसमें आई माता से संबंधित वस्तुओं का संग्रह है व पुराने इतिहास की जानकारी है।
- आई माता के दर्शनों के लिए आने वाले भक्तों के लिए भोजन की व्यवस्था हमेशा रहती है।
- भक्तों के रूकने के लिए करीब 120 कमरे हैं। जिनमें 6 कमरे वी.आई.पी. महानुभावों के लिए डबल बेड है। करीब 30 कमरे अटेच बाथरूम के साथ है। गर्मपानी के लिए गीजर, ठंडे पानी के लिए कूलर आदि की व्यवस्था है।
- रहने का स्थान निःशुल्क है। सफाई वगैरह के लिए नाममात्र का लागत शुल्क लिया जाता है।
- प्रवेश द्वार पर दो संगमरमर के सिंह की मूर्ति है जो इस बात का प्रतीक है कि धार्मिक व्यक्ति को निर्भय होना चाहिए।
- मंदिर के प्रवेश द्वार या सामने दर्पण लगा हैं भगवान के पहले स्वयं के दर्शन (आत्म दर्शन) करना नितांत आवद्गयक है इसलिए पहले स्वयं के दर्शन करें। आत्म दर्शन के बिन परमात्मा दर्शन संभव ही नहीं है इसके सामने दर्पण हैं।
- मंदिर में 9 (नौ) दुर्गा के भिन्न आयामों की तस्वीरें है इसकी विशेषता ये है कि व्यक्ति धर्म अर्थ तथा काम से मुक्त होना चाहिए तो ही मोक्ष प्राप्त होगा। यानि गर्भ गृह (निज मंदिर) में प्रवेश होगा और धर्म की ऊंचाई को प्राप्त करें और यदि निरंतर यात्रा जारी रखे तो आखिरी दशा में मोक्ष जो गर्भ गृह में उपलब्ध है प्राप्त कर सकेगें।
- निज मंदिर का प्रवेश द्वार ऊंचाई में बहुत छोटा है क्यों ? क्योंकि तुम झुको तो ही परमात्मा साक्षात् उपलब्ध है अहंकार मुक्त व्यक्ति ही परमात्मा के दर्शन का अधिकारी होता है। अकड़े तो दरवाजे से सिर फुट जाएगा यानि (अहंकार युक्त तो नरक) अहंकार मुक्त तो मोक्ष।
- अतीत में निज मंदिर में मात्र ज्योति की रोशनी पर्याप्त थी उस अंधकार के दो अर्थ है ध्यानी जब आंख बंद करता हैं तो अंधकार से ही अंर्तयात्रा प्रांरभ होती है। अंधे को प्रकाश नहीं दिखता तथा अंधेरा भी नहीं दिखता अंधे को अंधेरे को देखने के लिए भी आंखें चाहिए और मंदिर में धैर्य रखने पर स्वतः अखंड ज्योति का प्रकाश पूरे निज मंदिर में फैल जाता है। ( प्रकाश तो मौजूद ही था) तुम संसार के मिथ्या प्रकाश से मुक्त जब अखंड ज्योति के दर्शन करोगे तो बाहर प्रकाश तो क्या भीतर भी प्रकाश फैल जाएगा तथा परमात्मा की मौजूदगी का एहसास करने के लिए असीम धैर्य व आत्मदर्शन की आवद्गयकता होती है इसलिए निज मंदिर में कुछ देर परमात्मा के संग बैठकर निर्विचार दशा में भीतर के सिंहासन पर परमात्मा (माताजी) को आमंत्रित करें कि माताजी आप मेरे स्वयं मे अखंड विराजमान रहो।
- अखंड ज्योति में आई माताजी अखंड रूप से विराजमान है इसका साक्षात प्रमाण ज्योति में केसर का आना इस ऊर्जा क्षेत्र को भक्ति भाव में निर्विचार दशा से अपने भीतर समाहित होने दे। अखंड ज्योति के बांयी तरफ माताजी की गादी है इस महान गादी के ऊपर से आई माताजी का शरीर परमात्मा में लीन हो गया। उसकी पवित्रता यह है कि गादी के नीचे 550 वर्षों से जो 5 नारियल मौजूद है वे अभी भी इतने ही ताजा है। इस मंदिर की महिमा भी इतनी विशाल है कि आई माताजी का शरीर तो मोक्ष चला गया पर आईमाताजी द्वारा उस समय पहने वस्त्र ,पुस्तक व मोजड़ी गादी पर पड़ी रह गई। माताजी ने न तो जन्म किसी स्त्री की कोख से लिया न ही उनके शरीर का कोई अन्तिम संस्कार किया गया । 4 बड़ी चांदनी बीजों ( भादवा, चैत्र, वैशाख माह) पर दिवान साहब द्वारा निज मन्दिर मे इन वस्तुओ की गुप्त रूप से पूजा की जाती है और आशचर्य की बात यह है कि इस मंदिर में प्रवेश पर आपको ऐसा नहीं लगेगा कि ये 550 वर्ष प्राचीन मंदिर है एकदम ताजा व नया लगेगा। इसलिए निज मंदिर की शांति को भंग न करे चुप रहे, मौन रहे।
- निज मंदिर के मध्य में सिंहासन ( चांदी का बना) दीवान साहब हरिसिंह जी के द्वारा बनावया गया जिसमें दुर्गा (भवानी) का चित्र है। यह चित्र कैसे आया इसकी भी अदभुत कहानी है।
- ज्योति के सामने बाहर कोने में सांकल लगी है उसमें चोटी बांध कर दीवान रोहितदासजी ने श्री आई माताजी की तपस्या की और माताजी के साक्षात् दर्शन कर माताजी से प्रार्थना की कि आप सदैव यहां विराजमान रहे तब माताजी ने आशीर्वाद दिया कि 500 वर्ष के बाद आने वाले 500 वर्ष मैं तुम्हारे द्वारा कार्य करवाऊंगी जिसका प्रमाण 550 वर्ष बाद बिलाड़ा में रोहितदासजी का रनिया बेरा बिलाड़ा चबूतरी से मंदिर का निर्माण हुआ और चमत्कारिक स्थल जोड़ में भी मंदिर बना।
- निज मंदिर के बाहर निकलते वक्त कहते है कि परमात्मा की तरफ पीठ नहीं करना चाहिए इसका इतना ही अर्थ है कि आखिरी क्षण तक माताजी का दर्शन लाभ लेते रहे।
- निज मंदिर के दरवाजे के बांयी तरफ संगमरमर का कलश है जिसमें किसान अपनी फसलों का कुछ हिस्सा इसमें डालते है ये तो प्रमाणित सत्य है कि जितना दान पात्र में डालोगे कई गुणा परमात्मा आपकी झोली में डाल देगा।
- निज मन्दिर के बाहर के कक्ष (हॅाल) में जो गादी है उस पर दीवान साहब का राज तिलक होता हैं।
- माताजी ने दीवान पद की स्थापना कर ये आशीर्वाद दिया कि दीवान वंश के बड़े कुंवर जो गादी पर बैठे उसमें मेरा ही रूप जानना व इनकी आज्ञा में रहना व प्रथम दीवान गोविंददास जी कहा कि मेरे भक्तों को धर्म के मार्ग पर चलाना और इनकी रक्षा करना। तब से अब तक दीवान वंश की 19 पीढ़िया व्यतीत हो गई और इसमें सभी पीढ़ी पीर हुए। वे सब माताजी के परम भक्त व समाज सुधारक हुए जिसका इतिहास प्रमाण है।
- मुखय मंदिर के प्रवेश द्वार पर संगमरमर के पाट लगे हुए हैं। मंदिर से विदा लेते समय जो अनुभूति आपको मंदिर में हुई उसे आत्मसात् करें व गहन मनन चिंतन से सत्त आत्मदर्शन को अग्रसर हो उसके लिए कुछ देर तक पाट पर विश्राम करें व मनन करें।
- इस मंदिर की अद्भुत बात ये है कि श्री आई माताजी ने सभी मनुष्यों को निशर्त अपना द्गिाष्य बनाया जिसमें आदिवासी, क्षत्रिय, वैद्गय, ब्राह्मण, शुद्र, लौहार, सुथार, कुम्हार आदि किसी जाति के लोगों के लिए प्रवेश वर्जित नहीं है। छुआछुत का तो कोई प्रद्गन ही नहीं उठता।